Amitabh Bachchan recited this beautiful, inspiring poem in the closing moments of the historic KBC episode that saw, for the first time ever, a prize money of Rs. 7 crore (approx. USD 1.2 million) being won.
The poem was written by Harivansh Rai Bachchan, Amitabh’s father, and it goes like this:
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कà¤à¥€ हार नहीं होती।ननà¥à¤¹à¥€à¤‚ चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ रगों में साहस à¤à¤°à¤¤à¤¾ है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कà¤à¥€ हार नहीं होती।डà¥à¤¬à¤•à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सिंधॠमें गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दà¥à¤—ना उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ इसी हैरानी में।
मà¥à¤Ÿà¥à¤ ी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कà¤à¥€ हार नहीं होती।असफलता à¤à¤• चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ है, इसे सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करो,
कà¥à¤¯à¤¾ कमी रह गई, देखो और सà¥à¤§à¤¾à¤° करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को तà¥à¤¯à¤¾à¤—ो तà¥à¤®,
संघरà¥à¤· का मैदान छोड़ कर मत à¤à¤¾à¤—ो तà¥à¤®à¥¤
कà¥à¤› किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कà¤à¥€ हार नहीं होती।